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अल्लाह के प्रति विश्वास की मिसाल है ईद-उल-अजहा, जानिए क्यों मनाते हैं इसे?

इस्लाम धर्म के दो प्रमुख त्योहार होते हैं। एक को ईद-उल-फितर कहते हैं और दूसरे को ईद-उल-अजहा। ईद-उल-फितर को भारत में मीठी ईद भी कहते हैं और ईद-उल-अजहा को बकरीद। ईद त्योहार एक ख़ास संदेश के साथ मनाया जाता है, ईद सबसे प्रेम करने का संदेश देता है। बकरीद अल्लाह पर भरोसा रखने का संदेश देता है। बकरीद दुनिया भर के इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों का प्रमुख त्योहार है। इसे रमजान का पाक महीना खत्म होने के तकरीबन 70 दिनों बाद मनाया जाता है। इस त्योहार की सीख है कि नेकी और अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है।

इस्लामिक मान्यता के अनुसार, एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें। उन्हें 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी। वह अपने बेटे हजरत इस्माइल को अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे। उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल था। लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।

लेकिन अपने बेटे की कुर्बानी ने देख पाने के डर से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। और अपने बेटे की कुर्बानी दे दी। लेकिन कुर्बानी के बाद जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो देखा कि उनका बेटा जिंदा है। अपने बेटे को जिंदा देख वो बेहद खुश और हैरान थे। अल्लाह ने नेकी और दीन की राह में हजरत इब्राहिम की निष्ठा देखकर उनके बेटे की जगह एक बकरा रख दिया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, लोग बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देते हैं।

यह त्योहार अपना फर्ज निभाने का संदेश देता है। ‘ईद-उल-अजहा’ का स्पष्ट संदेश है कि अल्लाह के रास्ते पर चलने के लिए अपनी सबसे प्रिय वस्तु की कुर्बानी भी देनी पड़े तो खुशी से दें क्योंकि अल्लाह आपको नेकी और अच्छाई के रास्ते पर चलने का संदेश देते हैं। उसके बताए नेकी, ईमानदारी और रहमत के रास्ते पर चलना अल्लाह के प्रति आस्था रखने वाले हर एक बंदे का फर्ज है।

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