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यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने दी जुर्माने की चेतावनी

लखनऊ। यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग को लेकर दाखिल की गयी जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर आप और बहस करेंगे तो हम आप पर भारी जुर्माना लगाएंगे।

तमिलनाडु के रहने वाले वकील सीआर जयासुकिन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में हाथरस मामले का हवाला देते हुए कहा गया कि यूपी में मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, लिहाजा राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई में खुद पेश हुए सुकिन ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा गैरकानूनी और मनमाने तरीके से हत्याएं की जा रही हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में ऐसी स्थितियां बन गई हैं जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने याचिका में दावा किया, ‘उत्तर प्रदेश में संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू किया जाना भारतीय लोकतंत्र और राज्य के 20 करोड़ लोगों को बचाने के लिये जरूरी है।’

सुकिन ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने शोध किया है और उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्रॉफ बढ़ा है।

पीठ ने कहा, ‘आपने कितने राज्यों में अपराध के रिकॉर्ड का अध्ययन किया? क्या आपने अन्य राज्यों के अपराध रिकॉर्ड का अध्ययन किया? अन्य राज्यों में अपराध रिकॉर्ड पर आपका शोध क्या है? हमें दिखाइए कि आप किस आधार पर यह कह रहे हैं।’

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने याचिकाकर्ता-अधिवक्ता सीआर जया सुकिन को बताया कि वह जो दावे कर रहे हैं उसके संदर्भ में कोई शोध नहीं है और पूछा कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कैसे हो रहा है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान नाराज होते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि ज्यादा बहस करेंगे तो भारी जुर्माना लगाएंगे और उनसे अन्य राज्यों के अपराध के रिकॉर्ड पर शोध से जुड़े सवाल पूछे।

गौरतलब है कि हाथरस में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार 20 साल की युवती की 29 सितंबर, 2020 को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। हैवानियत की हदें पार करने वाली यह घटना 14 सितंबर को हुई थी। इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि एक क्रूरता अपराधियों ने पीड़िता के साथ दिखाई और इसके बाद जो कुछ हुआ, अगर वो सच है तो उसके परिवार के दुखों को दूर करने की बजाए उनके जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है। मृतक के शव को उनके घर ले जाया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

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