उझानी (बदायूं)। हाथरस में कथित गैंगरेप के बाद पीड़िता की मौत का गुस्सा बदायूं में भी लोगों के चेहरों व जुबान पर दिखा। गुरूवार शाम को उझानी चौराहे पर मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने मोमबत्तियां जलाकर न्याय की मांग की। लेकिन हाथरस की युवती को न्याय दिलाने के साथ लोग न सिर्फ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि एक दूसरी बेटी की अस्मिता से खिलवाड़ भी कर रहे हैं।
हाथरस की घटना पर गुरुवार शाम को मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने नगर के चौराहे पर अपने गुस्से का इजहार किया। लोगों ने कहा कि प्रदेश में अपराधी खुलेआम दुष्कर्म की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। योगी के राज में रामराज्य नहीं, रावणराज्य चल रहा है। हाथरस के मामले में दोषियों को सख्त सजा दी जाए। पीडिता को न्याय के लिए सभी ने हाथों में कैंडल जलाए, पोस्टर लिए गैंगरेप पीड़िता के दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग को लेकर जोरदार नारे लगाए। इस दौरान दीपू यादव, एजाज खान, मोहित गुप्ता, अमर कुमार, विशाल कुमार आदि लोग मौजूद रहे।
हाथरस की घटना पर लोगो का रोष जायज है लेकिन पोस्टर में जिस लड़की की तस्वीर का इस्तेमाल किया है उसका हाथरस की पीडिता से लेना देना नहीं है। असल में पोस्टर में नजर आ रही लड़की चंडीगढ़ की लड़की मनीषा यादव है। मनीषा के भाई अजय यादव ने बताया कि उनकी बहन को पथरी की बीमारी थी, इलाज के दौरान डॉक्टर की लापरवाही से 22 जुलाई 2018 को उसकी मौत हो गई। मनीषा की मौत के बाद डॉक्टर पर कार्रवाई के लिए सोशल मीडिया में आवाज उठाई गयी थी जिसके बाद से उसकी तस्वीर सोशल मीडिया में मौजूद थी। हाथरस प्रकरण के बाद किसी शख्स ने उसकी तस्वीर को वायरल कर दिया।
मनीषा के पिता मोहन लाल यादव ने बताया कि उन्हें बेहद दुख हो रहा है कि उनकी बेटी की मौत के बाद भी बदनामी की जा रही है। मोहन लाल ने बुधवार को चंडीगढ़ के एसएसपी को इस संबंध में शिकायत दी है और कहा कि सोशल मीडिया पर उनकी बेटी की तस्वीरें वायरल होने से रोका जाए। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो उन पर कार्रवाई की जाए।
इसके अलावा यौन अपराध के मामलों में तय किए गए दिशानिर्देशों के मुताबिक पीड़िता लड़की के नाम और उसकी पहचान को सार्वजनिक नहीं जाता है। इसके बावजूद भी लड़की के नाम को सार्वजानिक किया जा रहा है। हाल ही में कठुआ की आठ साल की बच्ची सहित बलात्कार पीड़ितों की पहचान सार्वजनिक करने के मसले उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि मृतक की भी गरिमा होती है और उनका नाम लेकर उनकी गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां बलात्कार पीड़ित जीवित हैं, भले ही पीड़ित नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका भी निजता का अधिकार है और पीड़ित पूरी जिंदगी इस तरह के कलंक के साथ जीवित नहीं रह सकते। भारतीय दंड संहिता की धारा 228 (ए) यौन हिंसा के पीड़ितों की पहचान उजागर करने से संबंधित है। कानून में इस अपराध के लिए दो साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है।