उझानी (बदायूं) जनपद के उझानी ब्लॉक एक गाँव में पंचायत चुनाव के बाद 7 मौतें हो चुकी है। मौत किस बीमारी से हुई, यह स्पष्ट नहीं हैं लेकिन इन सभी को कोरोना के लक्षण थे हालांकि इस तरह की मौतें सरकारी आंकड़ों में दर्ज नहीं हो रही हैं क्योंकि इनका टेस्ट ही नहीं हुआ था।
पिछले साल गांवों में न के बराबर दिखने वाला कोरोना संक्रमण अब उसे भी अपनी चपेट में ले चुका है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से स्पष्ट है कि जनपद में सबसे ज्यादा फीसद संक्रमित केस गाँव क्षेत्र से आ रहे हैं। वहीं कुछ लोग बीमार होने पर टेस्ट करवाने की बजाए अपने स्तर पर इलाज कर रहे हैं। हालत बिगड़ने पर अस्पताल जा रहे हैं लेकिन कई बार अस्पताल पहुंचते-पहुंचते देर होने की वजह से मरीज़ की मौत भी हो रही है। क्षेत्र के गाँव कुरऊ में गांव में 27 अप्रैल से लेकर 9 मई के बीच में 7 मौतें हुईं। खास बात यह है कि मृतकों में से किसी को भी पहले से कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। हालांकि मौत का कारण स्पष्ट नहीं हैं। मृतकों में से किसी की कोरोना जांच तो नहीं हुई थी मगर परिजनों के मुताबिक खांसी के साथ तेज बुखार, खांसी और फिर सांस लेने की दिक्कत के चलते हो रही मौतों से आशंका जताई जा रही है कि सभी मौतें कोरोना से हो रही है।
शासन-प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद भी ग्रामीण इलाक़ों में कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव है, लोग टेस्ट नहीं करवा रहे हैं या उनके सामने दूसरी मुश्किलें आ जाती हैं। कुछ मौतें इतनी जल्दी हुई हैं कि लक्षण सामने आने के बाद जांच का समय ही नहीं मिला। कोरोना संक्रमित मरीज़ इस बात को लेकर भी भयभीत रहते हैं कि कोरोना संक्रमित के तौर पर पहचान होने के बाद उनके परिवार को अलग नजरिए से देखा जाएगा। इस कारण बड़ी संख्या में लोग जाँच से बच रहे हैं और जब तक संभव हो, अस्पताल जाने से भी बच रहे हैं।
ग्रामीण संतोष राठौर उझानी नगर पालिका में सफाईकर्मी हैं, साथ ही बदायूं-बरेली हाईवे पर होटल भी चलाते हैं। उनकी 45 वर्षीय पत्नी ममता राठौर की 27 अप्रैल को मौत हो गयी। उनके कंधों पर अब 4 बेटियों की जिम्मेदारी है। संतोष अधिकांश समय अपने कामकाज में व्यस्त रहते हैं इसीलिए माँ की मौत के बाद अकेली हो चुकी बेटियां अब ननिहाल जा चुकी हैं।
संतोष बताते हैं कि 19 अप्रैल को उन्हें हल्का बुखार आया था। पंचायत चुनाव में मतदान के दिन उनकी समरेर ब्लॉक में ड्यूटी थी लेकिन बुखार की वजह से उन्होंने कैंसिल करवा दी। उन्होंने अपना एक निजी अस्पताल से अपना इलाज करना शुरू कर दिया, इस बीच 23 अप्रैल को उनकी 45 वर्षीय पत्नी ममता राठौर और उनकी तीन बेटियों को भी बुखार आ गया। जिसके बाद लोगों की सलाह पर वो घर से अलग अपने होटल में रहने लगे और घर वालों को भी निजी अस्पताल से दवाइयां दिलवा दी।
संतोष के मुताबिक 26 अप्रैल की शाम को उन्होंने जब घर कॉल किया तो उधर से कोई जवाब नहीं मिला, वो घर पहुंचे तो ममता बेहोश पड़ी हुई थी। इसके बाद ममता को शहर के ही दो निजी अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां भर्ती करने से पहले कोरोना जांच रिपोर्ट मांग की वजह से भर्ती नही किया गया। इसके बाद उन्हें रात में जिला अस्पताल में भर्ती किया गया। इलाज के दौरान ही 27 अप्रैल को उनकी मौत हो गयी। कोरोना टेस्ट के सवाल पर संतोष कहते हैं कि उन्होंने डर की वजह से टेस्ट नहीं करवाया।
27 अप्रैल को ही गाँव में 45 वर्षीय महिला सनिष्ठा की मौत हो गयी थी। सनिष्ठा अपने पीछे दो बच्चों को छोड़ गयी हैं। बेटी इलाहाबाद यूनीवर्सिटी से लॉ की पढाई कर रही है। उनके पति सुरेश बरेली एग्रीकल्चर विभाग में कार्यरत हैं। सुरेश बताते हैं कि सनिष्ठा को 25 अप्रैल को बुखार आया था तो एक निजी अस्पताल से दवाई ली थी। 27 अप्रैल की सुबह उनकी साँस उखड़ने लगी तो उन्हें बरेली लेकर भाग गए। लेकिन बरेली के तमाम बड़े अस्पतालों के चक्कर काटने के बावजूद उन्हें भर्ती नहीं किया गया और दौड़ते भागते शाम को उनकी मौत हो गयी।
सुरेश के मुताबिक जब कोरोना टेस्ट करवाने के लिए जिला अस्पताल का रुख किया था तब वहां पंचायत चुनाव के परिणाम के लिए कोरोना टेस्ट करवाने वालों की लम्बी लाईन लगी हुई थी इसीलिए टेस्ट नहीं करवा पाए।
गाँव की ही 50 वर्षीय महिला नन्ही देवी की 30 अप्रैल को मौत हुई। उनके 4 बच्चे अब अनाथ हो चुके हैं क्योंकि कुछ वर्षों पहले पिता किशनपाल का साया भी उनसे उठ चुका है। बड़े बेटे अमन ने बताया कि माँ को दो दिन पहले बुखार आया था। गाँव से ही उन्हें दवा दिलवा दी थी। 30 अप्रैल को उन्हें साँस लेने में दिक्कत हुई तो शहर के निजी अस्पतालों की ओर दौड़े लेकिन वहां भर्ती नहीं किया गया तो जिला अस्पताल चले गए। वहां उनकी मौत हो गयी।
इसके बाद 4 मई को 80 वर्षीय महिला इंद्रवती की मौत हुई। उनके बेटे लालाराम ने बताया कि उन्हें बुखार आया था। गाँव से ही दवा दिलवा दी थी, इसके बाद 4 मई को उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई और शाम को उनकी मौत हो गयी। लालाराम ने भी कोरोना टेस्ट करवाने की बात से इनकार कर दिया।
गाँव में अगले दिन 5 मई को एक ग्रामीण विजय जाटव(50 वर्ष) की मौत हुई। उनकी पत्नी मुन्नी बताती है कि विजय को हल्का बुखार और खांसी थी। गाँव के डॉक्टर से इलाज चल रहा था। मुन्नी के मुताबिक डॉक्टर के गलत इलाज की वजह से विजय की मौत हो गयी। विजय का इकलौता लड़का भानू भी कहता है कि डॉक्टर ने बहुत जल्दी ड्रिप लगा दी थी हालाँकि विजय का भी कोरोना टेस्ट नहीं करवाया गया था।
60 वर्षीय महिला भगवान देई की 8 मई को मौत हुई। उन्हें भी एक दिन पहले बुखार आया था। परिजनों ने शहर के प्राईवेट अस्पताल की ओर दौड़ लगाई लेकिन कोविड-19 रिपोर्ट की प्राथमिकता के चलते उन्हें भर्ती नहीं किया गया जिसके बाद परिजन उन्हें घर वापस ले आए। देर रात करीबन 12 बजे उनकी मौत हो गयी। भगवान देई का कोरोना टेस्ट नहीं हुआ था।
गाँव में सबसे कम उम्र की मौत 25 वर्षीय प्रेमपाल की हुई है। उसे पिछले 10 दिनों से बुखार, खांसी थी लेकिन परिवार ने उसका कोरोना टेस्ट करवाने की जहमत नहीं उठाई। प्रेमपाल के पिता संतोष बताते हैं कि शुरुआत में गाँव से ही इलाज चल रहा था, जब सुधार नहीं हुआ तो शहर के निजी अस्पताल से इलाज करवाया। रविवार को उसे साँस लेने में दिक्कत हुई और खाँसी ज्यादा बढ़ गयी तो इलाज के लिए बरेली जाते वक्त रास्ते में उसकी मौत हो गयी।
हर दिन किसी न किसी की मौत से ग्रामीण भी हैरान हैं। गाँव में दो डॉक्टर अपना क्लीनिक चलाते हैं। इनमे से एक डॉक्टर ने बातचीत में बताया कि पिछले कुछ दिनों से मरीजों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। इन सभी में बुखार, खांसी, शरीर में दर्द जैसी समस्याएं देखी जा रही हैं।
गाँव के नवनिर्वाचित प्रधान अनुज सिंह भी पंचायत चुनाव के बाद कोरोना संक्रमित हो गए थे। अनुज सिंह बताते हैं कि गाँवों में कई घरों में लोग बीमार हैं, निजी अस्पतालों से इलाज करवा रहे हैं लेकिन टेस्ट करवाने नहीं जाते हैं। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी सनोज मिश्रा ने बताया कि टीम द्वारा गाँव में सर्वे चल रहा है, मंगलवार को गाँव से दो लोग कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। गाँव में वैक्सीनेशन अभियान भी चलाया जा रहा है।