लखनऊ। यूपी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। बीजेपी ने आगामी फाईनल यानि विधानसभा चुनाव प्रदेश से पहले इस सेमीफाइनल में 75 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की है। हालाँकि इसके साथ एक इतिहास भी जुड़ा है, जिसने भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में परचम लहराया है उसे विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ता है। अब देखना है कि योगी आदित्यनाथ इस इतिहास को बदलने में कामयाब होंगे या नहीं।
यूपी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत को यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बूस्टर डोज माना जा रहा है। 2015 में यूपी की आधी से ज्यादा सीटों पर राज करने वाली सपा को करारा झटका लगा है। सोनिया गांधी की ससंदीय सीट रायबरेली और सपा के मैनपुरी जिले में भी भाजपा ने सेंधमारी की है। पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में 67 जिलों में भाजपा को अपना जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की खुशी मिली है। यह खुशी इसलिए और बड़ी मानी जा रही है क्योंकि महज कुछ माह बाद ही राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस जीत के बड़े संदेशों के साथ भाजपा की ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रियता और बढ़ेगी। जिला पंचायत चुनाव को सत्ता दल का चुनाव कहा जाता है। इससे पहले एसपी और बीएसपी के भी बड़ी संख्या में जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
बीएसपी सुप्रीमो मायावती की साल 2007 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनी थी। साल 2010 में बीएसपी के कार्यकाल में जिला पंचायत चुनाव हुए थे। इस दौरान बीएसपी के 20 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए थे। इसके साथ ही बीएसपी के लगभग 40 जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव जीत कर आए थे। बीएसपी के 60 से ज्यादा जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे। इसके बाद 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो उसमें समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी और मायावती सत्ता से बाहर हो गई थी।
समाजवादी पार्टी की साल 2012 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनी थी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। साल 2016 में पंचायत चुनाव एसपी के कार्यकाल में हुए थे। एसपी के 37 जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए थे। एसपी के प्रदेशभर में लगभग 65 जिला पंचायत अध्यक्ष जीते थे। बीजेपी के सबसे कम जिला पंचायत अध्यक्ष थे लेकिन जब 2017 के विधानसभा चुनाव हुए तो सपा सत्ता से बाहर हो गई। बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से सरकार बना ली।
अब भाजपा ने भी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सबसे ज्यादा जिलों पर कब्जा किया है। अगले साल 2022 में चुनाव है, अब देखना है कि बीजेपी इस इतिहास को तोड़ पाएगी या इसका शिकार हो जाएगी। उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा को जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को बधाई दी है, साथ ही इस जीत का श्रेय यूपी के सीएम योगी को दिया है। इसीलिए विधानसभा चुनाव में इस इतिहास को बदलना योगी आदित्यनाथ की भी जिम्मेदारी है।
योगी आदित्यनाथ को न सिर्फ जिला पंचायत अध्यक्ष से जुड़े इस इतिहास को बदलना है बल्कि नोएडा के इतिहास को बदलना है। नोएडा के बारे में कहा जाता है, जब भी प्रदेश का कोई सीएम यहां आया, वह दोबारा सत्ता में नहीं लौटा। पिछले 29 सालों से अंधविश्वास की यही धारणा चली आ रही है। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अपने इस कार्यकाल में नोएडा का दौरा कर चुके हैं।
नोएडा को लेकर अंधविश्वास तब जुड़ा जब सूबे में कांग्रेस की सरकार थी और उस वक्त के मुख्यमंत्री और गोरखपुर के निवासी वीर बहादुर सिंह 23 जून 1988 को नोएडा गए। मगर इसके अगले ही दिन ऐसे हालात बने कि उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। यहीं से ये अंधविश्वास खड़ा हुआ कि जो भी सीएम नोएडा जाता है, उसकी कुर्सी चली जाती है।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती यह अंधविश्वास तोड़ने 2011 में नोएडा गई थीं और 2012 के चुनावों में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। पिछली सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने नोएडा से जुड़ी योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास अखिलेश ने लखनऊ बैठे-बैठे ही कर डाला था। अखिलेश यादव ने अप्रैल 2015 में लखनऊ स्थित अपने आवास से नोएडा की एक निजी यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया था।
इस मौके पर उन्होंने कहा था, तमाम अंधविश्वासों के चलते नोएडा जाने पर पाबंदी है। इसलिए लखनऊ से ही यूनिवर्सिटी की आधारशिला रख रहा हूं। पुराने लोगों ने इस तरह का अंधविश्वास फैलाया है, लेकिन मैं जल्द ही नोएडा जाकर इस अंधविश्वास को तोड़ूंगा। लेकिन अखिलेश यादव 5 साल में एक बार भी नोएडा कदम रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
नोएडा अंधविश्वास के टोटके का असर राजनाथ सिंह पर भी दिखा था। सीएम रहते हुए उन्होंने नोएडा में बने फ्लाईओवर का उद्घाटन दिल्ली से किया था। यही नहीं, बड़े दबाव के बाद भी निठारी कांड में मुलायम सिंह यादव अपनी पिछली सरकार में नोएडा नहीं गए थे। कल्याण सिंह भी नोएडा जाने से परहेज करते रहे।