बिल्सी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले राजनेताओं की उठापटक का सिलसिला जारी है। बिल्सी विधानसभा से भाजपा विधायक आरके शर्मा चुनाव से ठीक एक माह पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोमवार को पार्टी के प्रदेेश मुख्यालय में बदायूं के बिल्सी से भारतीय जनता पार्टी के विधायक राधा कृष्ण शर्मा को अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाई। बिल्सी के पास ही भानपुर गांव में साधारण परिवार में जन्में आरके शर्मा साल 2007 में बसपा के टिकट पर पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। आरके शर्मा तब बसपा के टिकट पर बरेली की आंवला विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। आरके शर्मा ने वर्ष 2007 में भाजपा के प्रत्यासी धर्मपाल सिंह को हराकर आंवला विधानसभा की सीट बसपा के खाते में डाली थी। आंवला में आरके शर्मा की गहरी पकड़ है। माना जा रहा था कि बसपा ने उन्हें आंवला से टिकट नहीं दिया, जिसकी वजह से उन्होंने 2017 विधानसभा से ठीक पहले भाजपा का दामन थाम लिया था।
इसके बाद उन्हें भाजपा ने बिल्सी से उम्मीदवार बनाया। हालाँकि बिल्सी में भाजपा की राह आसान नहीं थी, यहाँ वजह पांच साल से यहां विधायक रहे बसपा के मुसर्रत अली बिट्टन फिर मैदान में थे और सपा से भी पुराने धुरंधर विमल कृष्ण अग्रवाल ताल ठोंक रहे थे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद बिल्सी में चुनावी रैली करने भी पहुंचे थे। इसके विपरीत एक महीने की मेहनत में ही क्षेत्र की जनता ने आरके शर्मा को विधानसभा पहुंचा दिया था।
बिल्सी की राजनीतिक पृष्ठभूमि
साल 1951 में पहली विधानसभा में बिल्सी के वोटरों ने सहसवान ईस्ट नाम की विधानसभा के लिए वोट किया था, तब कांग्रेस के उम्मीदवार की विजय हुई थी। साल 1957 के चुनाव में इस विधानसभा सीट का नाम इस्लाम नगर हो गया और फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई। साल 1962 में इसे सुरक्षित सीट कर दिया गया और साथ ही नाम बदलकर कोट विधानसभा हो गया। 1962 के चुनाव में भी इस सीट से कांग्रेस जीत हुई।
साल 1967 में इस सीट का नाम बदलकर अम्बियापुर हो गया और ये सुरक्षित ही रही। 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के एस लाल ने कांग्रेस के केशोराम को हरा दिया लेकिन दो साल बाद 1969 के चुनाव में कांग्रेस के केशोराम ने 1967 की हार का बदला ले लिया। इस सीट के लिए शुरुआती पांच चुनाव में ही चार बार विधानसभा क्षेत्र का नाम बदला जा चुका था। 1974 में इस विधानसभा क्षेत्र का नाम बिल्सी रखा गया, जो अब तक चल रहा है। 1974 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को नई नवेली जनता पार्टी के सोहनलाल ने हरा दिया।
करीबी अंतर से जीती थीं मायावती
बिल्सी विधानसभा सीट साल 1962 से सुरक्षित थी। साल 1996 में मायावती ने यहां से चुनाव लड़ा और बीजेपी के योगेंद्र कुमार सागर को हराया भी लेकिन जीत का अंतर महज 2515 वोट का रहा था। मायवती तब दो सीट से जीती थीं। उन्होंने बिल्सी सीट से इस्तीफा दे दिया।उपचुनाव में बसपा से कांग्रेस के टिकट पर दो बार के विधायक रहे भोलाशंकर मौर्या उतरे, मौर्या ने बीजेपी के योगेंद्र सागर को 924 वोट के अंतर से हरा दिया।
बीजेपी के योगेंद्र सागर को 1996 के मुकाबले ज्यादा वोट पड़े लेकिन वे बसपा उम्मीदवार से हार गए। 2002 में सपा के आशुतोष मौर्या ने बिल्सी में बीजेपी के अमित कुमार मथुरिया को हराया तो 2007 में बसपा से टिकट पर लड़े योगेंद्र सागर ने विजयी रहे। 2008 में योगेंद्र सागर पर गैंगरेप का आरोप लगा और मायावती ने 2012 में उनका टिकट काट दिया। ये सीट भी सामान्य हो गई। 2012 में बसपा से मुसर्रत अली बिट्टन ने सपा के विमल कृष्ण अग्रवाल को हराया।
2017 का जनादेश
बिल्सी विधानसभा सीट से बीजेपी ने साल 2017 के चुनाव में पंडित आरके शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा। बीजेपी उम्मीदवार ने बसपा के मुसर्रत अली बिट्टन को 26979 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया। 24 साल बाद इस सीट पर बीजेपी का कमल खिला। सपा के विमल कृष्ण अग्रवाल वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी ने बदायूं के बिल्सी में 1993 के बाद 2017 में जीत दर्ज की थी और आरके शर्मा यहां विधायक चुने गए थे।