लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं और अब सूबे में बीजेपी की सरकार बनाएगी। ऐसे में योगी आदित्यनाथ का एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनना भी तय है। इस जीत के साथ ही योगी ने कई मिथक तोड़ दिए हैं, साथ ही नया इतिहास भी रच दिया है।
योगी आदित्यनाथ सरकार की वापसी हो रही है। यह नतीजे कई मायने खास है और इसकी चर्चा लंबे समय तक होगी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने इस कार्यकाल के साथ ही एक रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। यूपी में अब तक कुल 21 सीएम हुए हैं, जिनमें से महज तीन ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए हैं। योगी से पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने (2007 से 2012) के बीच पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने भी 2012 से 2017 तक पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
37 वर्षों में सत्ता बरकरार रखने वाले पहले सीएम होंगे
योगी 37 सालों बाद लगातार दूसरी बार शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री होंगे। इससे पहले कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी 1985 में अविभाजित यूपी के सीएम थे जब राज्य में चुनाव हुआ था। कांग्रेस की जीत हुई और वह लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए इस पद पर बरकरार रहे। तब से कोई अन्य मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार सीएम की कुर्सी को बरकरार रखने में सफल नहीं हुआ है। एनडी तिवारी से पहले तीन अन्य सीएम लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटे थे। 1957 में संपूर्णानंद, 1962 में चंद्रभानु गुप्ता और 1974 में हेमवती नंदन बहुगुणा थे। योगी आदित्यनाथ लगातार जीतकर सीएम बनने वाले वाले यूपी के इतिहास में पांचवें सीएम बन गए हैं।
वहीं, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के साथ ही सूबे में एक पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेने वाले भी पहले व्यक्ति बन जाएंगे। यूपी में अभी तक कोई भी सीएम सत्ता में रहते हुए लगातार दूसरी बार सीएम नहीं बन सका।
सत्ता में वापसी करने वाले पहले बीजेपी सीएम
यूपी में आदित्यनाथ से पहले का कोई भी बीजेपी सीएम लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता बरकरार नहीं रख सका। प्रदेश ने अब तक बीजेपी के चार सीएम देखे हैं। योगी आदित्यनाथ से पहले, कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह प्रदेश के सीएम बन चुके हैं। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 1997 से 2002 तक पहली बार पांच साल तक यूपी की सत्ता चलाई लेकिन इन पांच सालों में बीजेपी ने भी 3 मुख्यमंत्री बदले। जब बीजेपी ने 21 सितंबर 1997 को सरकार बनाई तो कल्याण सिंह सीएम बने, फिर दो साल बाद सीएम बदलकर राम प्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी गई। इसके 351 दिन बाद राम प्रकाश गुप्ता को हटाकर बीजेपी ने राजनाथ सिंह को सीएम बना दिया।
जो विधानसभा चुनाव लड़ता है, वह नहीं बन पाता सीएम
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक मिथक है कि जो नेता विधानसभा चुनाव लड़ता है, वह सीएम नहीं बन पाता है। संयोग से बन भी जाए तो टिक नहीं पाता है। इसी मिथक की वजह से यूपी में जो नेता मुख्यमंत्री बनते हैं, वे अक्सर विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ते। ज्यादातर मुख्यमंत्री एमएलसी चुनकर बनते रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती, सपा प्रमुख अखिलेश और पिछली बार योगी आदित्यनाथ भी एमएलसी बनकर ही सीएम की कुर्सी पर काबिज रहे।
एक बार मुलायम सिंह यादव ने गुन्नौर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था, उन्हें जीत भी हासिल हुई थी और वे प्रदेश के सीएम भी बने थे लेकिन 2 साल से भी कम कार्यकाल के बाद वे कुर्सी से हट गए। इस बार योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा और सीएम पद की शपथ लेते ही वह इस मिथक को तोड़ डालेंगे हालांकि अखिलेश यादव ने भी इस बार करहल विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है लेकिन उनकी पार्टी सपा बहुमत से काफी दूर रह गई है।
टूट गया तीन दशक पुराना ‘नोएडा’ मिथक
योगी आदित्यनाथ ने तीन दशक से ज्यादा समय से चले आ रहे नोएडा मिथक को भी तोड़ दिया है। जिसके मुताबिक, नोएडा का दौरा करने वाला मुख्यमंत्री सत्ता खो देता है। इस मिथक की शुरुआत होती है 1988 से, उस वक्त वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे और वो नोएडा के दौरे पर आय़े थे लेकिन अगली बार उनकी सरकार नहीं बनी। इसके बाद एनडी तिवारी ने 1989 में नोएडा के सेक्टर 12 में नेहरू पार्क का उद्घाटन किया और कुछ दिन बाद उनकी कुर्सी चली गई। इसके बाद कल्याण सिंह और मुलायम सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ।
कल्याण सिंह की कुर्सी जाने के बाद राजनाथ सिंह को बीजेपी ने सीएम बनाया था और उन्हें 2000 में डीएनडी फ्लाइओवर का उद्घाटन करना था लेकिन राजनाथ सिंह ने नोएडा न आकर दिल्ली से ही उस फ्लाइओवर का उद्घाटन किया हालांकि, इसके बाद भी उनकी कुर्सी नहीं बची। अब इसे इत्तेफाक कहें या मिथक कि 2011 में मायावती ने भी नोएडा आने की हिम्मत की और 2012 में उनकी सरकार चली गई। इसके बाद अखिलेश यादव सीएम रहते कभी नोएडा नहीं गए। कई लोगों ने कहा कि शायद वो इस मिथक की वजह से नोएडा नहीं गए। वहीं 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ 40 बार यहां आ चुके हैं। उन्होंने नोएडा में कई विकास परियोजनाओं और प्रशासनिक कार्यों का उद्घाटन, शिलान्यास भी किया है।
ऐसी ही दूसरी कहानी आगरा के सर्किट हाउस से जुड़ी है। 2018 में योगी इस सरकारी आवास में रुके थे। उनसे पहले करीब 16 साल तक इस सर्किट हाउस में कोई सीएम नहीं ठहरा। इस सर्किट हाउस को मनहूस मानने की शुरुआत तब हुई जब जब राजनाथ सिंह आगरा सर्किट हाउस में रुके और उसके बाद उनकी कुर्सी चली गई। आगरा सर्किट हाउस को लेकर मुख्यमंत्रियों में इतनी दहशत पैदा हो गई कि राजनाथ सिंह के बाद मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव इसमें ठहरने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
एक्सप्रेस वे का डर भी हुआ दूर
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने या नहीं बनने को लेकर एक और मिथक रहा है। कहा जाता है कि जो नेता यूपी में एक्सप्रेस-वे की राजनीति करते हैं, उनकी दोबारा सरकार नहीं आता। पूर्व सीएम मायावती ने 2002 में ताज एक्सप्रेस-वे के शिलान्यास के बाद ही उनकी सरकार गिर गई फिर अखिलेश यादव ने ताज एक्सप्रेस-वे का काम पूरा करवाया और उसे यमुना एक्सप्रेस-वे नाम दिया। उन्होंने फिर आगरा एक्सप्रेस-वे का लोकार्पण किया और फिर 2017 में उनकी सरकार भी दोबारा नहीं आ पाई। वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार ने प्रदेश को पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेस-वे दिए और दोबारा उनकी सरकार आ गई है यानी यह मिथक भी उन्होंने तोड़ डाला है।