बदायूं/इलाहाबाद। लाउडस्पीकर विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मौलिक अधिकार नहीं हैं। जनपद की नूरी मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति के लिए याचिका दायर की गयी थी।
बिसौली तहसील में धोरनपुर गांव की नूरी मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाकर अजान देने की अनुमति न देने के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गयी थी। मुतवल्ली इरफान की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाकर अजान पढ़ने के मूल अधिकारों व कानूनी अधिकार का हनन किया गया है। याची का कहना था कि एसडीएम बिसौली का आदेश अवैध है। इसीलिए एसडीएम का तीन दिसंबर 21 का स्पीकर लगाने की अनुमति न देने का आदेश रद्द किया जाए। याची ने 20 अगस्त 21 को अर्जी दी थी जिसे एसडीएम ने निरस्त कर दिया है। याचिका में एसडीएम समेत तीन लोगों को पक्षकार बनाया गया हालाँकि न्यायमूर्ति वीके बिड़ला तथा न्यायमूर्ति विकास ने इस याचिका को रद्द कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगाकर अजान देना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह सही है कि अजान तो इस्लाम का अंग है लेकिन लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का हिस्सा नहीं है। इसको एसडीएम ने मस्जिद पर लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति न देने के उचित कारण भी बताए। अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है, कोर्ट ने याचिका में की गई मांग को गलत बताया और अर्जी को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में दिया था आदेश
17 साल पहले 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर बजाने को लेकर आदेश दिया था। कोर्ट ने साफ कहा था कि ऊंची आवाज यानी तेज शोरगुल सुनने के लिए मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है लेकिन ये आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि किसी को भी इतना शोर करने का अधिकार नहीं है कि पड़ोसियों और दूसरे लोगों को परेशानी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से ज्यादा नहीं होगी। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर और उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रावधान करे।