वाराणसी। यूपी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से करीब दो साल पूर्व गायब हुआ छात्र शिव कुमार त्रिवेदी अब कभी लौट कर नहीं आएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीबीसीआईडी ने रिपोर्ट पेश कर बीएचयू वाराणसी के लापता छात्र की मौत की जानकारी दी है। डीएनए टेस्ट में मौत का खुलासा हुआ है।
मध्य प्रदेश के जिला पन्ना के पोस्ट बड़गढ़ी खुर्द, गांव ब्रजपुर के रहने वाला छात्र शिव बीएचयू से बीएससी की पढ़ाई कर रहा था। 13 फरवरी 2020 को वाराणसी की लंका पुलिस की एक टीम शिव को लेकर बीएचयू कैंपस से थाने आई थी। इसके बाद शिव लापता हो गया। उधर पन्ना में रह रहे किसान पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी वहां से लगातार फोन करते रहे लेकिन शिव का नंबर नहीं उठा। इसके बाद प्रदीप बनारस आ गए। उन्हें पता चला कि शिव तो कई दिन से हॉस्टल नहीं आया।
उन्होंने पुलिस से मदद मांगी तो लंका थाना पुलिस ने उनकी रिपोर्ट दर्ज भी कर ली जबकि शिव इसी थाने की हिरासत से गायब हुआ था। बेटे का पता लगाने के लिए पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी ने अखबारों में विज्ञापन दिया और दीवारों पर इश्तहार भी छपवाए। कॉलेज में ऐसा ही एक पोस्टर देखकर उस रात पुलिस बुलाने वाला छात्र अर्जुन सिंह सामने आया। उसने शिव के पिता से मुलाकात की और सारा किस्सा कह सुनाया लेकिन प्रदीप लंका थाने पहुंचे तो पुलिस ने साफ इनकार कर दिया।
अर्जुन सिंह ने बताया कि 13-14 फरवरी की रात उसने ही पुलिस को बुलाया था। अर्जुन ने बताया, ‘उस समय कॉलेज बंद था और हॉस्टल में भी बच्चे नहीं थे। मुझे लगा कि नशे की वजह से कोई छात्र यहां बैठा है। इसलिए मैंने 112 नंबर पर फोन किया। मेरे सामने ही लंका थाने की पुलिस आई और शिव को ले गई। इसके बाद मैं भी इसे भूल गया। लेकिन जब मैंने कॉलेज परिसर में गुमशुदगी का पोस्टर देखा तब शिव के पिता को पूरी बात बताई।” अर्जुन ये भी कहते हैं कि साथ में आए पुलिसकर्मियों ने कहा था कि वे शिव कुछ देर में छोड़ देंगे।
अुर्जन से बात करने के बाद प्रदीप फिर से लंका थाने पहुँचे तो पुलिस वालों ने कहा कि उन्हें नहीं पता। प्रदीप कहते हैं कि उन्होंने मुझे चेतगंज थाने में भेज दिया। चेतगंज थाने गया तो कहा कि वह उनके थाने का मामला नहीं है। आप सीर गेट चौकी में पता करें। वहां गया तो उन्होंने कहा कि यह हमारे यहां का मामला नहीं है, आप कंट्रोल रूम में जाएं और पता लगाएं कि ये गाड़ी किस थाने की है और लड़के को कहां ले गई है। मैं कंट्रोल रूम गया तो वहां बताया गया कि हमें जानकारी नहीं है।
इसके बाद अगले दिन मैं अर्जुन को लेकर एसएसपी के पास गए। अर्जुन के मोबाइल नंबर पर 112 नंबर से आया मैसेज दिखाया। एसएसपी ने 112 नंबर के ड्राइवर को बुलाया। पूछताछ के बाद ड्राइवर ने ही बताया कि हम शिव कुमार को 13 फरवरी को रात साढ़े आठ बजे लंका पुलिस चौकी में छोड़ा था।
एसएसपी के आदेश के बाद तत्कालीन लंका थाना इंचार्ज भारत भूषण तिवारी के सामने ड्राइवर ने कहा कि मैंने इन्हें ही सौंपा था। भारत भूषण कहते हैं कि शिव रात भर तो कस्टडी में बंद था। सुबह जब हमने उसे देखा तो उसने कपड़े में बाथरूम कर दिया था। वह मानसिक रूप से बीमार था। इसलिए हमने उसे छोड़ दिया। इसके बाद वह कहां गया, हमे नहीं पता।
पुलिस के रवैये को देखते हुए छात्रों ने सोशल मीडिया पर शिव के लिए मुहिम शुरू की। इस मामले में बीएचयू के पूर्व छात्र और हाईकोर्ट में वकील सौरभ तिवारी ने एक याचिका दाखिल की। 25 अगस्त 2020 को मामले की पहली ही सुनवाई में हाईकोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई। उसी साल सितम्बर में हुई दूसरी सुनवाई में कोर्ट ने एसएसपी वाराणसी को व्यक्तिगत शपथ पत्र दाखिल करने को कहा। एसएसपी ने 22 सितम्बर को कोर्ट में व्यक्तिगत शपथ पत्र दाखिल भी किया। मामले की जांच शुरू हुई तो प्रथमदृष्टया सामने आए तथ्यों के आधार पर पांच पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया। अगले ही महीने यानी नवंबर 2020 में यह मामला सीबीसीआईडी को ट्रांसफर कर दिया गया।
डीएनए जांच कराई गई
सीबीसीआईडी सीआईएस शाखा लखनऊ की आईपीएस सुनिता सिंह की अगुवाई में पुलिस ने 15 फरवरी 2020 को वाराणसी के रामनगर स्थित जमुना तालाब में मिले एक शव का डीएनए टेस्ट कराया। जांच में इसके नमूने शिव के पिता प्रदीप तिवारी से मैच कर गए। इसके बाद अब सीबीसीआईडी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश कर बीएचयू वाराणसी के लापता छात्र की मौत की जानकारी दी है।
कूदने के लिए गंगा पार कर तालाब में क्यों गया शिव
पुलिस का कहना है कि शिव मानसिक तौर पर बीमार था इसलिए वह लंका थाने से जाने के बाद रामनगर के तालाब में डूब गया। इस पर वकील सौरभ तिवारी ने पूछा कि आखिर जब डूबकर मरना ही था तो वह गंगा नदी पार कर रामनगर तालाब तक क्यों गया। सौरभ तिवारी के मुताबिक पुलिस ने बताया है कि जिस वक्त शिव को थाने लाया गया उस वक्त थाने का सीसीटीवी कैमरा काम नहीं कर रहा था। जबकि आरटीआई से मांगी गई सूचना में पता चला कि सभी कैमरे चल रहे थे।
काम नहीं आया पिता का संघर्ष
डीएनए मैच होने से यह तय हो गया कि अब शिव कभी नहीं मिलेगा। पुलिस वालों का एक और क्रूर चेहरा उजागर हुआ है। जवान बेटे की तलाश में उसके पिता एक साल से भी अधिक समय तक गंगा के घाटों में डेरा डाले पड़े रहे। शिव की आस में भीषण गर्मी के दिनों में भी पैदल ही पूरा बनारस घूसा। गंगा के किनारे अपने बेटे को खोजते खोजते एक पिता को अब पता चला है कि उसका बेटा तो उसी दिन मर गया था। लेकिन पुलिस के बयानों पर उलझते दो वर्ष तक पिता ने पुत्र की तलाश की। आखिरकार पिता को वह खबर सुनने को मिली जिसे एक पिता कभी सुनना नही चाहता पर सवाल ये है कि क्या शिव ने आत्महत्या की है या फिर शिव की मौत के पीछे कोई बड़ा राज छिपा है। अभी इससे पर्दा उठाना बाकी है।