फाजिलनगर। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Assembly Election Results 2022) के नतीजे आ चुके हैं, भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया हैं वहीं भाजपा छोड़ समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले ‘मौसम वैज्ञानिक’ स्वामी प्रसाद मौर्य फाजिल नगर सीट से चुनाव हार गए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव से ऐन वक्त पहले भाजपा छोडकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था, इसके बाद उन्होंने भाजपा को सांप और खुद को नेवला भी बताया था।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने चुनाव से ठीक पहले मंत्री पद से इस्तीफा देते हुए बीजेपी छोड़ दी थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी में दलितों, पिछड़ों के हितों की अनदेखी की गई। मौर्य ने सपा जॉइन की थी और उन्हें कुशीनगर जिले के फाजिल नगर से टिकट दिया गया था। गुरुवार को घोषित नतीजों में स्वामी प्रसाद मौर्य 40 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए। उन्हें बीजेपी के सुरेंद्र कुशवाहा ने हराया है। चुनाव हारने के बाद मौर्य ने ट्वीट किया, ‘समस्त विजयी प्रत्याशियों को बधाई। जनादेश का सम्मान करता हूं। चुनाव हारा हूं, हिम्मत नहीं। संघर्ष का अभियान जारी रहेगा।’
स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ने 11 जनवरी को यूपी के कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, फिर उन्होंने बीजेपी भी छोड़ दी थी। इसके बाद अखिलेश यादव के पाले में आ खड़े हुए स्वामी प्रसाद मौर्य को उम्मीद थी कि इस बार अखिलेश यादव की सरकार बनेगी और बीजेपी हारेगी। इसी वजह से समय रहते उन्होंने अपना मंत्री पद बनाये रखने के लिए समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी उन्हें पार्टी में शामिल करते समय यही सोचा था कि वह कई सीटों पर समाजवादी पार्टी को जिताएंगे लेकिन वह तो अपनी सीट बचाने में भी नाकाम हो गए, मंत्री पद तो गया ही विधायकी भी चली गई। बीजेपी छोड़ते ही स्वामी प्रसाद ने खुद को नेवला बताते हुए कहा था कि नाग रूपी आरएसएस और सांप रूपी बीजेपी को स्वामी रूपी नेवला यूपी से खत्म करके ही दम लेगा।
चुनावी मौसम वैज्ञानिक माने जाते थे स्वामी
स्वामी प्रसाद मौर्य को भी राजनीति का मौसम वैज्ञानिक माना जाता है लेकिन इस बार वह मौसम के बारे में सही जानकारी जुटाने में चूक गए। पांच बार के विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य ने काफी लंबा समय बहुजन समाज पार्टी में गुजार है लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2022 विधानसभा चुनाव की तरह ही 2017 चुनाव में बसपा को छोड़ दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे।
उन्होंने अपने पुत्र और बेटी को टिकट न मिलने की वजह से बसपा को त्यागा था, 2017 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने उनके बेटे बेटे उत्कृष्ट मौर्य को ऊंचाहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया लेकिन वो काम अंतर से वोट हार गए थे। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल की।
वहीं इस बार चुनाव में बीजेपी उनके बेटे को टिकट देने को तैयार थी, हालाँकि स्वामी प्रसाद मौर्य को लगता है कि इस बार समाजवादी पार्टी सत्ता में आ रही है, साथ ही उनके बेटे समाजवादी पार्टी से ही जीत सकते हैं इसीलिए उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया।
जब संघमित्रा ने थामा डंडा और पिता के लिए माँगा वोट
फाजिलनगर विधानसभा चुनाव से दो दिन पहले गोड़रिया नामक स्थान पर सपा और भाजपा कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए थे। दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों के समर्थकों के बीच अचानक बहस हो गयी, इसके बाद पत्थर चले और कई गाड़ियों के शीशे टूट गए।
इस बीच स्वामी प्रसाद मौर्य की भाजपा सांसद बेटी संघमित्रा मौर्य भी घटनास्थल पर पहुंचीं। उन्होंने मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान आरोप लगाया कि पिता के ऊपर हमले की सूचना पर जब वह यहां आ रही थीं तो रास्ते में भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी जो शांति का और दंगा मुक्त प्रदेश की बात करती है, उसके प्रत्याशी ने हमारे पिता पर हमला किया है। फाजिलनगर की जनता 3 मार्च को इन हुड़दंगियों को सबक सिखाएगी। स्वामी प्रसाद मौर्य को जिताकर इन हुड़दंगियों को घर में बंद कर देगी।
उन्होंने कहा कि कुशीनगर से जब वह आ रही थी तो यहां बाजार में मुझे भी घेरा गया। आरोप भी लगाया कि बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उस महिला को भी घेरा जो खुद पार्टी से सांसद है। उन्होंने बहन-बेटियों को सुरक्षा के नाम पर साधते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ देने के लिए कहा। इस विवाद से संबंधित एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें सांसद संघमित्रा मौर्य हाथ में डंडा लिए सड़क पर अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ दिख रही थीं, उनके सामने भाजपा समर्थक कुछ युवा खड़े थे जिन्हें वह अवाज देकर कह रही कि आइए अब तो मैं भी आ गयी।
वहीं इससे पहले तक संघमित्रा ने कहा था कि पार्टी हाईकमान को पहले ही बता दिया है कि वो फाजिलनगर में बीजेपी का प्रचार नहीं करेंगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कि वह कहीं नहीं जा रही हैं। पिता के दूसरी पार्टी में जाने का मतलब यह नहीं है कि वह भी भाजपा छोड़ देंगी।