उझानी(बदायूं)। उझानी के वार्ड 12 से पूर्व सभासद सत्येन्द्र गुप्ता रविवार शाम पंचतत्व में विलीन हो गए लेकिन मौत कई सवाल छोड़ गयी है। वर्षों की उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को एक छोटे से चुनाव के लिए धूमिल कर दिया गया। चुनाव में दबंगई, अपनों का साथ छोड़ना, रिश्तेदारों का चुनाव में मुंह फेरना उन्हें अंदर ही अंदर कचोट रहा था, बेटी की शादी के बीच वो इस प्रताड़ना को बर्दाश्त नहीं कर पाए।
सत्येन्द्र गुप्ता शनिवार रात भोजन के बाद करीबन 11 बजे अपने घर के बाहर टहल थे, उन्होंने पत्नी को बताया कि मुझे बैचेनी महसूस हो रही है। टहलने के दौरान ही वो अपने दरवाजे पर गिर गए। सीसीटीवी में कैद हुई इस घटना में सत्येन्द्र गुप्ता कुछ सेकेंड्स के लिए घर के सामने एक चबूतरे पर टिके हुए नजर आते हैं। इसके बाद वो घर की ओर पलटते हैं और धड़ाम से गिरते हैं। आसपास के लोगों ने उन्हें उठाया और उन्हें एक प्राईवेट अस्पताल ले जाया गया। इसके बाद उन्हें मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया लेकिन डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉक्टर के मुताबिक उन्हें हार्ट अटैक आया था। वहीं रविवार को कछला घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
1995 से सभासद था उनका परिवार
सत्येन्द्र गुप्ता और उनका परिवार 1995 में पालिका के बोर्ड में शामिल था। 1995 में सत्येंद्र की मां ईश्वरदेवी बोर्ड का हिस्सा बनीं। अगली बार वर्ष 2002 के निकाय चुनाव में उनकी पत्नी अनीता गुप्ता ने जीत दर्ज की। वर्ष 2007 के चुनाव में सीट सामान्य हुई तो खुद सत्येंद्र गुप्ता जीत गए। उन्होंने 2012 का चुनाव भी जीता। वर्ष 2017 के चुनाव में सीट महिला के खाते में गई तो उनकी पत्नी अनीता गुप्ता को विजय मिली। वहीं इस साल 2023 निकाय चुनाव में सतेन्द्र गुप्ता मैदान में थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
हारे हुए प्रत्याशियों के गठजोड़ के बावजूद भी बेफिक्र थे सत्येंद्र
निकाय चुनाव में सत्येन्द्र गुप्ता समेत तीन प्रत्याशी मैदान में थे। हालाँकि सत्येन्द्र गुप्ता का मुकाबला मात्र दो उम्मीदवारों से नहीं था, बीते चुनाव में हारे हुए तमाम प्रत्याशी इस बार सत्येन्द्र के खिलाफ एकजुट हुए और एक उम्मीदवार को समर्थन दिया। चुनाव में खड़े दो उम्मीदवारों में से एक से 50 हजार की रकम की डिमांड भी की थी, जब उसने इनकार कर दिया तो हारा हुआ यह शख्स दूसरे प्रत्याशी के खेमे में पहुँच गया। बताया जाता है कि यहाँ से भी उसे बड़ी रकम हासिल हुई। इस सबके बावजूद सत्येन्द्र गुप्ता को किसी बात का चिंता नहीं थी।
ऑडियो वायरल आर पहुँचाया सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान
उझानी निकाय चुनाव के लिए 11 मई को मतदान हुआ। मतदान से दो दिन पूर्व 9 मई की रात को सत्येन्द्र गुप्ता से एक महिला से बातचीत का एक हिस्सा वायरल किया गया। करीबन 4 वर्ष पुरानी यह ऑडियो सत्येन्द्र गुप्ता से रंजिश रखने वाले एक पड़ोसी युवक ने प्रतिद्वंद्वियों को सौंपा था। चुनाव प्रचार में भी यह युवक सक्रिय था। इसके बाद इस ऑडियो को दूसरे पड़ोसी शख्स ने सत्येन्द्र गुप्ता के व्हाट्स ग्रुप में डाल दिया। ऑडियो भेजने के बाद यह शख्स अनजान बन गया और ग्रुप में ही माफी मांग ली जबकि यह शख्स सार्वजानिक तौर पर दूसरे प्रत्याशी के समर्थन में लगातार प्रचार कर रहा था। जाहिर है कि ऑडियो को जानबूझकर कर सत्येन्द्र गुप्ता के व्हाट्सएप ग्रुप में डाला गया। इसके बाद इसी ग्रुप में कई लोगों ने उन्हें अपमानित किया। सत्येन्द्र गुप्ता वार्ड के सभी लोगों को अपना परिवार मानते थे, लोगों की असलियत से वाकिफ होने के बावजूद उन्होंने ऐसे लोगों को ग्रुप में जोड़ रखा था।
सत्येन्द्र गुप्ता से रंजिश रखने वाले इन लोगों ने तमाम व्हाट्सएप ग्रुप में इस ऑडियो को प्रसारित किया। इसमें कई भाजपा के झंडाबरदार भी शामिल थे। इन लोगो ने मीडियाकर्मियों को फोन कर ऑडियो से अवगत करवाया ताकि सत्येन्द्र गुप्ता को अपमानित करने में कोई कसर न रह जाए। हालाँकि तोड़-मरोड़कर वायरल की गयी इस ऑडियो से मीडियाकर्मी भी वाकिफ था इसीलिए उन्होंने इसे तूल नहीं दिया।
घर घर जाकर सुनाई गयी ऑडियो, मारने-पीटने की दी धमकी
प्रतिद्वंद्वियों ने सत्येन्द्र गुप्ता की इस ऑडियो को मतदाताओं के घर-घर जाकर सुनाया। एक दूसरे प्रत्याशी के समर्थक ने महिला हितैषी बनते हुए सत्येन्द्र गुप्ता को गाली-गालौच करते हुए उन्हें मारने-पीटने की धमकी भी दी थी। वहीं जब सत्येन्द्र गुप्ता तक यह बात पहुंची तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं सब अपने ही लोग हैं, उन्होंने अब तक मेरा साथ दिया है। इस चुनाव में न सही, अगले चुनाव में सब वापस आ जाएंगे। सत्येन्द्र गुप्ता का कहना था कि वो शख्स दूसरे प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार कर रहा है, भावनाओं में बहकर इस तरह बोला है।
मतदान की आखिरी रात दबंगई से थे हैरान
सत्येन्द्र गुप्ता सावर्जनिक राजनीति में बीते करीबन 25 वर्षो से सक्रिय थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडी सामाजिक सद्भाव कमेटी के प्रमुख भी रहे थे, इसके अलावा संगठन में अलग-अलग पदों में अहम भूमिका निभाई थी। यही वजह है कि उनके निधन की सूचना से हर शख्स हैरान था। देर रात से ही उनके घर पर आखिरी दर्शन के लिए ताँता लगा रहा। भाजपा से लेकर समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस सभी दलों से जुड़े लोगों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। राजनीति में उनके लिए कोई दुश्मन नहीं था लेकिन इस साल उन्हें अजीबोगरीब हरकतों का सामना करना पड़ा।
मतदान से पूर्व की शाम से ही अलग-अलग गालियों में दूरदराज मोहल्लों-गाँवों से बुलाए गए लड़को का पहरा लगाया गया। सत्येन्द्र गुप्ता जब वार्ड के मतदाताओं से मुलाकात के लिए पहुंचे तो दूसरे प्रत्याशी के समर्थक यह युवक सत्येन्द्र गुप्ता के आगे-पीछे थे। जब वो कुछ घरों में दाखिल हुए तो यह यह युवक दरवाजों में कान लगाकर बातों को सुन रहे थे और कुछ ही सेकेंड्स में घर में आ गए। इसके बाद सत्येन्द्र को वहां से उठना पड़ा। वार्ड की गालियों में पूरी रात इन युवकों की बाईक दौड़ रही थी ताकि सतेन्द्र किसी मतदाता से बात न कर पाएं। एक छोटे से चुनाव में सत्येन्द्र गुप्ता के लिए यह पहला अनुभव था, जिससे वो हैरान थे।
रिश्तेदारों ने फेरा मुंह, अपनों से छोड़ा साथ
मतगणना के बाद आए नतीजों से सत्येन्द्र निराश नहीं थे। मंडी समिति से बाहर आकर उन्होंने अपनी पत्नी को कॉल कर कहा कि मै अब फ्री हो गया हूँ। लेकिन इस दौरान उन्हें कुछ बातें भीतर ही कचोट रही थी, घर आते हुए भी उन्होंने कहा कि मेरे तो रिश्तेदार ही बिक गए। दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने रिश्तेदार को दूसरे प्रत्याशी से रुपये लेते हुए देखा था। उस वक्त तो उन्होंने इसे शायद पारिवारिक मजबूरी बोलते हुए नजरअंदाज कर दिया लेकिन मतदान के नतीजों के बाद इस बात ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। चुनाव में हार के बाद जब लोग उनके घर नहीं पहुंचे तो वो इससे भी परेशान हो गए। उन्होंने कहा कि जीत के बाद सब लोग मिलने आते थे लेकिन इस बार कोई नहीं आया। इस तरह की बातों को उन्होंने कई दिनों तक दोहराया।
6 दिन बाद है बेटी की शादी
सत्येन्द्र गुप्ता 7 बहनों के अकेले भाई थे। अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने सभी बहनों की धूमधाम से शादी की। उनके माथे पर कभी कोई शिकन नहीं थी, हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट ही नजर आई। वहीं 6 दिन बाद बेटी की 5 जून को शादी है। घर में शादी की तैयारियां चल रही थीं। सत्येन्द्र भी कामकाज में जुटे हुए थे, उन्हें चुनाव में हार का कोई गम नहीं था। लेकिन चुनाव के कड़वे अनुभवों ने उन्हें तोड़ दिया। अपनों के साथ छोड़ने से लेकर उनकी वर्षों की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया गया जिस वो बर्दाश्त नहीं कर पाए।