एटा। यूपी में जनपद एटा की थाना सिढ़पुरा पुलिस द्वारा 16 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर केस के मामले में बुधवार को विशेष सीबीआई कोर्ट के न्यायाधीश ने पूर्व एसएचओ समेत नौ पुलिसकर्मियों को अलग-अलग सजा सुनाई। सीबीआई कोर्ट ने पांच पुलिसकर्मियों को उम्रकैद और चार पुलिसकर्मियों को पांच-पांच साल कारावास की सजा सुनाई है। सभी नौ दोषियों को अर्थदंड भी लगाया गया। मृतक कारीगर के परिवार वालों ने अदालत के फैसले का सम्मान किया है। साथ ही यह भी कहा कि हमें दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने की उम्मीद थी।
सीबीआई कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ में फर्नीचर कारीगर राजाराम की हत्या करने के दोषी तत्कालीन थाना प्रभारी पवन सिंह, एसआई पाल सिंह ठेनुआ, सरनाम सिंह, राजेंद्र प्रसाद और जीप चालक मोहकम सिंह को विशेष सीबीआई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। पांचों पर अदालत ने हत्या के मामले में 33-33 हजार और साक्ष्य मिटाने के मामले में 11-11 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया है। इसके अलावा चार पुलिसकर्मियों बलदेव प्रसाद, अजय कुमार, अवधेश रावत और सुमेर सिंह को हत्या के आरोप से बरी कर दिया लेकिन साक्ष्य मिटाने और झूठी सूचना देने के मामले में 5-5 साल की सजा और 11- 11 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया।
परिवार अदालत के फैसले से संतुष्ट
राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी दो पुत्र और दो पुत्रियों के साथ अलीगंज के मोहल्ला पड़ाव में रहती हैं। मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह मकान बनवा लिया है। मोहित ने कहा कि जब पिता की हत्या हुई थी उस समय वह करीब पांच साल का था। पिता की मौत के बाद पूरा परिवार अस्त-व्यस्त हो गया। हम लोगों के साथ बहुत बुरा हुआ। ऐसा किसी के साथ न हो।
संतोष ने कहा कि न्याय के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया है। अदालत ने अपना काम कर हम लोगों को न्याय भी दिला दिया। अब सरकार आगे आए और मुखिया के रूप में पति की मौत के बाद बिगड़ी घर की स्थिति संभालने के लिए कुछ करे। एक बच्चे को नौकरी दिलाई जाए। अदालत का फैसला आया तो राजाराम की पत्नी संतोष और बेटे मोहित ने आसपास के घरों के लोगों को मिठाई भी बांटी। उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग से संघर्ष करते हुए विषम हालात में हमने यह जीत हासिल की है।
18 अगस्त वर्ष 2006 में हुई घटना
कोतवाली देहात क्षेत्र के गांव मिलावली निवासी राजाराम अपनी पत्नी संतोष और छोटे भाई अशोक के साथ सिढपुरा थाना क्षेत्र के गांव पहलोई अपनी रिश्तेदारी में जा रहे थे। तभी सिढपुरा थाने के दो सिपाहियों ने राजाराम को रोक लिया और तब तक पुलिस की एक जीप आ गई, जिसमें पुलिसकर्मी अपने साथ बैठा ले गए। पत्नी ने टोका तो उससे कह दिया कि थानेदार सहाब बुला रहे हैं। इसके बाद उनका कहीं भी पता नहीं चला। परिवार चार दिन तक तलाश करता रहा और थाने भी पहुंचा मगर कह दिया कि लूट के मामले में पूछताछ के बाद छोड़ दिया। यह भी कहा कि उन्हें उसी दिन छोड़ दिया था। लेकिन यह सच नहीं था।
अंत्येष्टि के लिए शव को ले गए भूतेश्वर
राजाराम की पत्नी संतोष बतातीं हैं कि पांचवें दिन उन्हें तब पता चला जब पुलिसकर्मी उनके पति की अंत्येष्टि कराने के लिए शव को भूतेश्वर ले गए। भूतेश्वर पर रहने वाले बंगाली बाबा राजाराम को जानते थे, क्योंकि उन्होंने उनसे फर्नीचर बनवाया था। उन्होंने शव को पहचान लिया। बंगाली बाबा ने शव के साथ परिवार के किसी व्यक्ति को नहीं देखा तो उनका माथा ठनका, तब तक परिवार के लोग पहुंच गए मगर चिता जल चुकी थी। बंगाली बाबा ने पुष्टि कर दी कि राजाराम का शव था।
अखबार में छपी फोटो से की थी पहचान
राजाराम के छोटे भाई अशोक शर्मा उस समय 14 साल के ही थे। उन्होंने बताया कि करीब दस दिन बाद सूचना मिली कि पुलिस ने अज्ञात लुटेरे का एनकाउंटर किया है। अखबार में छपी फोटो से हमने भैया को पहचाना। इसके बाद से न्याय के लिए लंबा संघर्ष किया है। इस दौरान तमाम बाधाएं आई। आरोपितों ने परिवार को बार-बार धमकाया, केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया लेकिन परिवार ने हार नहीं मानी।
अदालत के आदेश के बाद भी नहीं दर्ज की रिपोर्ट
राजाराम की पत्नी संतोष ने बताया कि अदालत में पुलिस कर्मियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र भी दिया मगर रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी। इसके बाद हम लोग हाईकोर्ट गए। जहां पर सीबीआई जांच के लिए आदेश हुआ। सीबीआई के इंस्पेक्टर रोहित श्रीवास्तव ने मामले की विवेचना की। 16 साल 4 महीने और 3 दिन में अब न्याय का दिन आया है। संतोष और उनके देवर अशोक बताते हैं कि सीबीआई इंस्पेक्टर नें निष्पक्षता पूर्वक विवेचना की और न्याय दिलवाने में अहम भूमिका निभाई है। इसलिए आज पूरा परिवार खुश है।
इसी वजह से हुई राजाराम की हत्या
सिपाही राजेंद्र ने कारीगर राजाराम से अपने घर की रसोई में काम कराया था। राजाराज ने मजदूरी के पैसे मांगे तो सिपाही ने देने से इनकार कर दिया पर राजाराम पैसे लेने की मांग पर अड़ गया। इस पर सिपाही राजेंद्र ने उसे अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर मुठभेड़ में निपटा दिया। पुलिस ने मुठभेड़ को लेकर अपनी जीडी पर दिखाया कि सिपाही राजेंद्र सिंह और अजंट सिंह गश्त पर थे तभी राजाराम व अन्य ने लूटने का प्रयास किया। इसके बाद सिढ़प़रा-धुमरी मार्ग गांव सुनहरा के निकट मुठभेड़ हुई जिसमें राजाराम मारे गए। मुठभेड़ के बाद राजाराम को अज्ञात बताया गया। राजाराम के खिलाफ एक भी केस नहीं दर्ज था पर पुलिस ने उसे लुटेरा बताते हुए एनकाउंटर में मार डाला। पुलिस वाले उसे पहचानते थे फिर भी शव की शिनाख्त नहीं की और अज्ञात में दाह संस्कार किया। उसके परिजनों को उसके मर जाने की सूचना भी नहीं दी। कोर्ट में पुलिस न तो उसे लुटेरा साबित कर सकी और न ही मुठभेड़ को असली।