लखनऊ। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस चुनाव में बसपा से हाथ मिलाकर बीजेपी को मात देने का सपना संजो रही थीं, लेकिन मायावती ने एक झटके में राहुल गांधी के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
बसपा अध्यक्ष ने बुधवार को कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ उनकी पार्टी गठबंधन नहीं करेगी। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के कांग्रेस से गठबंधन ना करने के फैसले ने अब उत्तर प्रदेश की सियासी तस्वीर पर असर डालना शुरू कर दिया है। यूपी में अब तक पीएम मोदी का रास्ता रोकने के लिए बीएसपी, एसपी और आरएलडी के बीच कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन होने के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि, बुधवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती के ऐलान के बाद महागठबंधन की इस कवायद को अब करारा झटका लगा है।
बसपा 2019 के चुनाव में यूपी में अलग होकर लड़ती है तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। तीन दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस संगठन की दृष्टि से काफी कमजोर दिखने लगी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 7.3 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां आंकड़ा 6.2 फीसदी तक ही रह गया। पार्टी के पास यूपी में मात्र 7 विधायक हैं। ये नतीजा तब जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन करके मैदान में उतरी थी। वहीं बसपा गठबंधन में शामिल नहीं हुई थी।
कांग्रेस को गोरखपुर और फूलपुर सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का खामियाजा भुगतना पड़ा था। कांग्रेस ने गोरखुपर में सुरहिता करीम मैदान में उतारा था, जंहा उनकी जमानत भी जब्त हो गई और उन्हें सिर्फ 18 हजार 844 वोट मिले थे। फूलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने मनीष मिश्र को मैदान में उतारा था, जिन्हें महज 19 हजार 353 मत मिले थे जबकि बसपा के समर्थन से सपा ने गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट पर जीतने में कामयाब रही थी। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से हम इस बात को समझ सकते हैं कि कांग्रेस का जनधार लगातार गिरता जा रहा हैं।
ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी यूपी में एसपी और बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो उसके लिए अपना सियासी वजूद बचाना आसान होगा। वहीं अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में कांग्रेस को नुकसान जरूर होगा।