उझानी(बदायूं)। आनलाइन शापिंग करना एक महिला को महंगा पड़ गया, उसके खाते से ठग ने करीबन एक लाख 70 हजार रुपये उड़ा दिए। ठगी का यह खेल महिला को एनी डेस्क मोबाइल एप डाउनलोड करवाकर खेला गया। उनकी शिकायत पर थाना पुलिस ने मामला दर्ज करके कार्रवाई शुरू कर दी है।
नगर के गंजशहीदा मोहल्ला निवासी अरविन्द शर्मा की पत्नी आशा कुमारी सीएचसी में स्वास्थ्यकर्मी हैं, उनका भारतीय स्टेट बैक उझानी शाखा में खाता है। बीते माह मई में उन्होंने एक शोपिंग साईट मीशो से दो कुर्तियाँ आर्डर की थीं, कुछ दिन बाद उनके पास ऑर्डर पहुँचा तो उसमे एक ही कुर्ती निकली जबकि पैसे दोनों कुर्तियों के काट लिए गए। आशा कुमारी ने मीशो के कस्टमर केयर को इसकी जानकारी दी तो उन्हें बताया गया कि आपका पैसा वापस मिल जाएगा।
11 मई को उनके मोबाइल पर अनजान नंबर से कॉल आई और कॉलर ने खुद को मीशो कंपनी से बताते हुए बुकिंग प्रोडक्ट सम्बंधित डिटेल मांगी। इसके बाद ठग ने पैसा वापस मिलने की बात कहकर एनी डेस्क डाउनलोड करने को कहा तो उन्होंने डाउनलोड कर लिया। एनी डेस्क इंस्टाल होते ही मोबाइल का कंट्रोल ठग के पास चला गया और उसने ‘गूगल पे’ के जरिए प्रोसेस करवा कर अकाउंट से 6 ट्रांजैक्शन के जरिए 169968 रुपए ट्रांसफर कर लिए।
पीड़ित ने पैसे निकलता देख अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया, जिसके बाद बैंक को सूचना दी गयी लेकिन तब एक भारी रकम खाते से उड़ चुकी थी। उन्होंने इसकी शिकायत साईबर क्राइम पुलिस को दी, जिस पर अब उझानी पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है।
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ठगी का नया तरीका बन गए हैं एप
साइबर ठगों के इस पैंतरे के बारे में लोगों को जानकारी कम है। आजकल ठग एनीडेस्क, क्विक सपोर्ट, टीम व्यूवर जैसे एप से लोगों को शिकार बना रहे हैं, इन एप को डाउनलोड करने के बाद ही पूरा कंट्रोल ठगों के पास चला जाता है। ठग ज्यादातर एनीडेस्क एप मोबाइल पर लोड कराते हैं। इसमें नौ अंकों का कोड होता है, जिसे साइबर ठग पूछ लेते हैं। जैसे ही ठग यह कोड अपने मोबाइल पर फीड करता है पीड़ित के मोबाइल या फिर कंप्यूटर पर उसका नियंत्रण हो जाता है। रिमोट एक्सेस के जरिए वह पीड़ित के मोबाइल में जो चाहे देख सकता है। मोबाइल पर नियंत्रण के बाद अगर पीड़ित के मोबाइल में कोई यूपीआई एप है तो उसके खाते से ही रकम गायब कर लेता है। ऐसा इसलिए कि इसमें जो भी ओटीपी आता है वह साइबर ठग देख लेता है।
नामी वेबसाइट से मिलता जुलता नाम रख बनाते हैं फर्जी वेबसाइट
साइबर ठग तमाम ऑनलाइन शापिंग कंपनियों के नाम पर फर्जी वेबसाइट बनाते हैं, इन पर हेल्पलाइन नंबर डाल देते हैं। ऐसे में हेल्पलाइन के इन नंबरों पर फोन करने के बाद साइबर ठग उसको बातों में उलझाते हुए मदद का आश्वासन देकर यह ऐप लोड करा देते हैं।