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सुख चैन सब गायब, कड़ाके की ठंड में खेतों की रखवाली करने को मजबूर है हल्कू

खेतों में काम करते किसान

उझानी(बदायूं)। कहते हैं कि किसान है तो अन्न है और अन्न है तो हम हैं लेकिन इन किसानों की राह आसान नहीं है। एक तरफ ज्यादा बारिश, ओलावृष्टि, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं इनका चैन छीन रही हैं। दूसरी तरफ बेसहारा गौवंश किसानों को दुख दे रहे हैं। इस वजह से कथा सम्राट मुंशी प्रेम चंद की कहानी पूस की रात का मुख्य किरदार हल्कू अब भी गांवों में जीवित है और कड़ाके की ठंड में भी खेत की रखवाली करने को मजबूर है।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने एक कहानी लिखी थी पूस की रात। कहानी का मुख्य पात्र गरीब किसान हल्कू पूस की रात को एक मोटी चादर के सहारे खेत की रखवाली कर रहा है। हल्कू आसपास पड़ी पत्तियों को जमा कर अलाव जला लेता है जिस कारण आलस्य उसे दबा लेता है। उसे इतना भी होश नहीं रहता कि उसके फसलों को जंगली जानवर उजाड़ रहे हैं। सुबह उठने पर जब उसकी पत्नी मुन्नी कहती है- ‘अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी ‘ तो हल्कू हंसते हुए कहता है- ‘रात को ठंड में यहां सोना तो न पड़ेगा।’

ठीक वैसे ही हालात आज किसानों के हो गए हैं। जिले भर में किसान बेसहारा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए खेतों में सर्द रातें काट रहे हैं। प्रेमचन्द्र का हल्कू तो सो गया था लेकिन आज के किसान मजबूर हैं। उन्हें अपनी फसलों की रखवाली करनी है ताकि जिन्दगी गुजर बसर हो सके। छुट्टा पशुओं से अपने फसल को बचाने के लिए दिन में तो खेतों में रहना ही पड़ता है, साथ ही कड़ाके की ठंड में किसान मचान पर रात भर जागते हैं।

कोई सुनने वाला नहीं है
उझानी ब्लॉक क्षेत्र के गांव देवरमई पश्चिमी निवासी गंगा देवी ने बताया कि बीती रात उनके गेंहू की फसल जानवर खा गए इसीलिए खेत के चारों ओर रस्सी बांधनी पड़ रही है। बेटा राम कुमार दिव्यांग है तो रात में रखवाली करना मुश्किल है। जानवरों से किसान परेशान हो चुके हैं, कोई सुनने वाला नहीं है।

गांव देवरमई पूर्वी निवासी जगदीश ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में गौवंश का आतंक बढ़ गया। हम लोग बड़ी मेहनत और उम्मीद से फसल लगाते हैं कि जब ये हो जाएगा तो उनके घर का खर्चा चलेगा लेकिन छुट्टा जानवर आते हैं और रात को पूरी फसल नष्ट करके चले जाते हैं। इसीलिए रात में खेत में ही रहना पड़ता है। वरना साहब, इतनी सर्दी में रजाई से निकलने को किसका मन करता है। मजबूरी ही है जो यहां खींच लाती है।

गांव के ही विष्णु दयाल बताते हैं कि इस सरकार में सब कुछ ठीक है लेकिन गौवंश का कोई समाधान नहीं हुआ। किसान परेशान हो चुका है, यहाँ कोई गौशाला भी नहीं खुली है। रात में रखवाली करते हुए कई बार तो ठंड लगने से बीमार हो चुके हैं, लेकिन किसानों की समस्या किसी को दिखाई नहीं देती।

किसान परमेश्वरी, जगदीश और गंगा देवी

वहीं भूपेन्द्र का कहना है कि किसान ही जो इतना कष्ट झेलकर भी मुस्कराता रहता है। वरना सरकारी कर्मचारियों को देख लीजिए, जरा सा संकट आ जाता है तो हड़ताल कर बैठते हैं। किसान तो हड़ताल भी नहीं कर सकता।

छतुईया गांव निवासी कुंवरपाल ने बताया कि रात को खेतों में पशुओं का झुंड आता है और फसल को पैरों से रौंद कर चला जाता हैं। यदि जंगल के चारों तरफ कटीली तारबंदी कर दी जाए तो काफी हद तक जानवरों को रोका जा सकता है लेकिन इन तारों को लगाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब फसलों की सुरक्षा राम भरोसे है। खेती करना अब भारी पड़ रहा है।

धर्मपुर गांव निवासी जीवाराम ने बताया कि उनकी साढ़े तीन बीघा गेंहू की फसल गौवंश ने बर्बाद कर दी। कड़ाके की ठंड में रात को भी फसलों की निगरानी करनी पड़ रही है। कोई जनप्रतिनिधि इसकी सुध नहीं लेता। उन्होंने बताया कि बीते दिनों खेत के रखवाली करते वक्त सांड के हमले में गाँव के भूदेव और प्रेमपाल घायल हो गए थे।

गौवंश भी है परेशान
देवरमई पश्चिमी गाँव निवासी महेश पाल ने बताया कि जब गायें दूध देना बंद कर देती हैं तो लोग उन्हें खुला छोड़ देते हैं। नई सरकार ने गायों को लेकर सख्ती की है जिसकी वजह से बाज़ार में बिक भी नहीं पा रही हैं। अब ये बेचारे भी जाएं तो जाएं कहां। न आम लोगों ने इनके लिए कुछ किया है न जिम्मेदारों ने। फसल बर्बाद करते हैं तो लोग भी इन्हें इधर से इधर भगाते हैं। हम तो परेशान हैं ही, ये पशु हमसे भी ज्यादा परेशान हैं।

गौवंश के प्रति भावुक महेश कहते हैं कि जानवर को भी ऊपर वाले ने पेट दिया है उसे वो भरेंगे ही। पेट भरने के लिए तार पार कर खेत में घुसने की कोशिश करते हैं जिससे उन्हें चोट पहुंचती है। उन्हें चोटिल देखकर हमें भी दुख पहुंचता हैं लेकिन हम क्या करें, फ़सल भी बचानी है।

किसानों का दर्द

समाधान की जरूरत
भारतीय किसान यूनियन के नेता आसिम उमर ने बताया कि आवारा गोवंश से किसानों को भीषण सर्दी में फसलों की रखवाली करना भयंकर समस्या बन गयी है। सरकार द्वारा प्रत्येक ग्राम पंचायत पर गौशाला की स्थापना की आवश्यकता है, स्थानीय स्तर पर लापरवाही के कारण फसल सुरक्षा हो या गौरक्षा दोनों ही दम तोड़ रहे हैं। जिस ग्राम पंचायत में गौशाला नहीं वहाँ के आवारा गौवंश पकड़कर अन्य ग्राम पंचायत की गौशाला में भेजकर इस समस्या का समाधान किया जाए।

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