संतकबीरनगर। उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर का एक ऐसा गांव है, जहाँ आज तक बकरीद पर कुर्बानी नहीं हुई है। यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है, बकरीद से पहले पुलिस सारे बकरे उठा ले जाती है और तीन दिन बाद वापस करती है। 2007 में दो गुटों में जमकर बवाल हुआ था।
संतकबीरनगर जिले में धर्मसिंहवा थाना क्षेत्र के मुसहरा गांव में दो पक्षों में आपसी सहमति न बन पाने के कारण बकरीद नहीं मनी। सतर्कता व सुरक्षा के बीच लोगों ने अपने घरों में नमाज अदा की। वहीं सुरक्षा के मद्देनजर एसडीएम अजय कुमार त्रिपाठी और सीओ अंबरीष भदौरिया के साथ काफी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात रही। मंगलवार से ही यहां पर काफी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवान मुस्तैद किए गये। कोई गड़बड़ी न होने पाए, इसको लेकर पुलिस ने दोनों संप्रदायों से कुल 41 लोगों को शांतिभंग में पाबंद किया। मंगलवार को को राजस्व कर्मियों व पशु चिकित्सक की मौजूदगी में लोगों के घरों से तेरह बकरे निकलवाकर गांव में स्थित एक मदरसे में सुरक्षित रखवा दिया गया है। एसओ जितेंद्र यादव ने बताया कि तीसरे दिन शाम को सभी के बकरे उन्हें सुपुर्द कर दिए जाएंगे।
मुसहरा गांव में पुलिस अभिलेखों में कुर्बानी की परंपरा नहीं है इसीलिए यहां हमेशा से रोक लगी हुई है। बदले में कई साल से मुस्लिम पक्ष के लोगों की ओर से होलिका दहन भी रोक रखी गई है। दोनों पक्षों में यूं तो सबकुछ ठीक है, लेकिन बकरीद और होलिका को लेकर एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं।
गांव के मुस्लिम पक्ष के लोगों ने बताया कि वो कुर्बानी करना चाहते हैं, लेकिन पुलिस और गांव के हिन्दू पक्ष के लोग उन्हें बकरीद पर कुर्बानी नहीं करने देते। बकरीद खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे वापस किए जाते हैं। पुलिस के कब्जे में भी मालिक को ही अपने बकरों की देखभाल करनी पड़ती है क्योंकि कोई रसीद नहीं दी जाती कि लोग अपने बकरे को पहचान सकें।
हिन्दू पक्ष का कहना है कि कोई नई परंपरा नहीं बनने दी जाएगी। दलील और दावा ये है कि जब कुर्बानी गांव के बाहर एक जगह पर होती आई है तो गांव में कुर्बानी क्यों की जाए। रही बात होलिका दहन की तो जब कुर्बानी नहीं करने दी गई तो मुस्लिम पक्ष के लोगों ने होलिका जलाने वाली जमीन को कब्रिस्तान की भूमि बताकर विवाद पैदा किया और पिछले कुछ साल से होलिका दहन भी रुक गया।
2007 में पूर्व विधायक ताबिश खां के कहने पर इस गांव में कुर्बानी कर दी गई, इसके बाद वहां दो गुटों में जमकर बवाल हुआ। बात इतनी बढ़ी कि लूटपाट से लेकर आगजनी और तोड़फोड़ तक हो गई। हिंसा को काबू में करने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इस बवाल के दौरान 29 लोग जेल भी गए थे। उसी दिन से बकरीद आने पर सुरक्षा के लिहाज से पुलिस फोर्स ओर पीएसी तक तैनात कर दी जाती है।
पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है। त्योहार खत्म होने के 3 दिन बाद जाकर बकरे उनके मालिकों को वापस किए जाते हैं। इस मामले पर जिले के आलाधिकारियों की नजर रहती है। हालांकि गौर करने वाली बात यह भी है कि गांव में 365 दिन में 362 दिन बाजार में बकरे काटकर वैसे ही बेचे जाते हैं, लेकिन इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। बस बकरीद के तीन दिन बकरे नहीं कटते हैं, कोई चोरी-छिपे काट न ले, इसके लिये बकरों का कैद कर लिया जाता है।