लखनऊ। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों से सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने से जुड़े होर्डिंग्स के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगे सीएए हिंसा के आरोपियों के पोस्टर हटाए जाने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। इस मामले में गुरुवार को सुनवाई हो सकती है। इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी ने कहा कि हम इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की जांच कर रहे हैं। यह जांच की जा रही है कि पोस्टर हटाने के लिए किस आधार पर आदेश पारित किया गया है। हमारे विशेषज्ञ इसकी जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार तय करेगी कि कौन सा विकल्प अपनाना है। मुख्यमंत्री को फैसला लेना है, लेकिन यह जरूर है कि सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों में से कोई भी बख्शा नहीं जाएगा।
क्या है मामला
गत 19 और 20 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचा था। इसके अलावा दंगाईयों ने आम लोगों की गाड़ियों में भी आग लगा दी थी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए आगजनी और हिंसा करने वालों की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पहचान कर उन्हें नुकसान की भरपाई का नोटिस थमाया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने लखनऊ में कुल 57 लोगों को नोटिस भेजा था। उन सभी की तस्वीरें, नाम और पते के साथ पोस्टर पर लगवाए थे। लखनऊ जिला प्रशासन ने शहर के हजरतगंज समेत चार थाना क्षेत्रों के 100 प्रमुख चौराहों पर कथित दंगाईयों की होर्डिंग लगवाई थी।
हाईकोर्ट ने दिये थे पोस्टर-बैनर हटाने का निर्देश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए लखनऊ जिला प्रशासन को आगामी 16 मार्च तक ये सभी होर्डिंग्स और पोस्टर हटाने के आदेश दिये। कोर्ट ने कहा है कि सरकार लोगों की निजता व जीवन की स्वतंत्रता के मूल अधिकारों पर अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को पोस्टर-बैनर हटाने का निर्देश दिया है और 16 मार्च को अनुपालन आख्या मांगी है।
हाई कोर्ट ने कहा है कि जब लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन हो रहा हो तो कोर्ट पीड़ित के आने का इंतजार नहीं कर सकती। लोक प्राधिकारियों की लापरवाही से मूल अधिकारों का हनन किया जा रहा हो तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने का अधिकार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की पीठ ने यह फैसला सुनाया था। अदालत ने राज्य सरकार को पोस्टर हटाने के साथ ही इस पर 16 मार्च तक रजिस्ट्रार जनरल को एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।